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राजेश त्रिपाठी
Contest-इन दिनों हिंदी जिस तरह से देश से लेकर विदेश के पटल तक विराज रही है, अपनी अहमियता का लोहा मनवा रही है, वहां यह कहने में संकोच नहीं कि यह आज वैश्विक भाषा है। यह एक ओर जहां बाजार में अपनी सशक्त पैठ बना कर बाजार की प्रतिष्टित भाषा बन गयी है, वही यह हर भारतीय के लिए गर्व और सम्मान की भाषा है। यह गर्व यह सम्मान इसे हिंदी पट्टी के लोगों ने तो दिलाया ही है, अन्य क्षेत्रों या राज्यों के हिंदी प्रेमियों का योगदान भी इसमें कम नहीं है। यह कहने में सोकोच नहीं होना चाहिए कि हिंदी फिल्मों ने भी इस भाषा के प्रचार-प्रसार में बहुत बड़ा योगदान है। जब तक देश में अंग्रेजों का वर्चस्व रहा, अंग्रेजी का भी दबदबा भारत में रहा। सरकारी कामकाज की भाषा भी अंग्रेजी रही लेकिन उसके बाद आजादी आयी, वर्षों बाद जब उदारीकरण का दौर आया, दूरदर्शन के अलावा निजी चैनल आये तो हिंदी के प्रयोग में भी वृद्धि आयी। बाजार के जिन उत्पादों का प्रचार दूर-दूर तक पहुंचना था, उसके लिए भी हिंदी की ही बांह थामनी पड़ी। यहां तक कि मल्टीनेशनल कंपनियों को भी देश में व्यापक बाजार पाने के लिए अपने उत्पादों का विज्ञापन हिंदी में करना पड़ा। इस तरह बाजार की भाषा के रूप में भी हिंदी ने अपना सिक्का जमा लिया।
कभी देश में अंग्रेजी अखबारों का बोलबाला था लेकिन आज हिंद अखबार भी प्रसार संख्या और लोकप्रियता की दृष्टि से अंग्रेजी से लोहा ले रहे हैं। हिंदी आज बाजार की भाषा के रूप में प्रतिष्ठा पा चुकी है। आगामी समय में हिंदी का स्वरूप विश्वव्यापी होने वाला है। आज स्थिति यह है कि पूरी दुनिया में 80 करोड़ से भी अधिक लोग हिंदी बोलते समझते हैं। चीनी भाषा के पश्चात हिंदी पूरे विश्व में दूसरे नंबर की बोली जाने वाली भाषा है। भविष्य में हिंदी भाषा के विकास की आपार संभावनाएं है। हिंदी के बाजार की भाषा बनने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि किसी भी वस्तु के सफल प्रचार के लिए ऐसी भाषा होनी चाहिए जो सरल, सर्वग्राह्य और व्यापक हो। आज हिंदी की उपयोगिता से इनकार नहीं किया जा सकता। गैर हिंदीभाषी अंचलों में भी इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है। जबसे केंद्रीय नौकरियों में हिंदी ज्ञान आवश्यक किया गया, तब से अहिंदी भाषी क्षेत्रों में भी लोग न सिर्फ हिंदी पढ़ने बल्कि उसमें परीक्षाएं देने लगे हैं। वैसे यह सर्वविदित तथ्य है कि राजनीतिक, क्षेत्रीय या अन्य किसी दुराग्रह के चलते लोग हिंदी को अपनाने में भले ही हिचकिचाते हों लेकिन हिंदी समझते सभी हैं। संभव है कि पढ़ना-लिखना न जानते हों। आज लोगों को हिंदी सीखने का आग्रह बढ़ रहा है। हिंदी किस तरह से विश्व पटल में भी छा रही है, सम्मान पा रही है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विश्व के कई बड़ें देशों को विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। विदेश में हिंदी के अनेक विद्वान हैं जिनके मुंह से धाराप्रवाह हिंदी सुन कर अवाक रह जाना पड़ता है। हिंदी का लोहा तो अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा तक ने मान तभी तो उन्होंने अपने यहां के अधिकारियों को कहा था कि उनको हिंदी सीखनी चाहिए।
हिंदी फिल्मों से भी हिंदी की लोकप्रियता विदेशों में बढ़ी है। एक अनुमान के मुताबिक विश्व के कम से कम 50 देशों में हिंदी फिल्में प्रदर्शित होती हैं। इंटरनेट व वेबसाइट के माध्यम से भी हिंदी में काम करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यही वजह है कि आईटी में हिंदी के बढ़ते प्रयोग के चलते माइक्रोसाफ्ट जैसे दिग्गज साफ्टवेयर निर्माता ने अपने साफ्टवेयरों में हिंदी की सुविधा शुरू कर दी है। गूगल ने अपने ब्लागस्पाट डॉट कॉम के जरिये ब्लाग (चिट्ठा) बनाने का ऐसा प्रभावी प्लेटफार्म दिया है जिससे हिंदी ब्लागों की बाढ़ आ गयी है। इनमें से कुछ ब्लाग तो बहुत ही अच्छे, उपयोगी और ज्ञानवर्धक भी हैं। ब्लाग के माध्यम से बहुत अच्छा काम हो रहा है। इसके जरिये जन जागरण का भी काम हो रहा है। आजकल विदेशी मोबाइल निर्माता कंपनियां अपने मोबाइल में हिंदी भाषा की सुविधा दे रही हैं। इसका सीधा अर्थ है कि उन लोगों को हिंदी के बढ़ते प्रभाव का पता है। उन्हें ज्ञात है कि अगर किसी देश के बाजार में पैठ बनानी है, उसे पकड़ना है तो वहां की उस भाषा की बांह थामनी होगी, जो वहां ज्यादा प्रचलित और सम्मानित है। जाहिर है कि भारत की सर्वमान्य भाषा हिंदी ही है।
आज टीवी पर हिंदी धारावाहिकों की धूम है। ऐतिहासिक, सामाजिक और दूसरे विषयों के धारावाहिक रोज परोसे जा रहे हैं और घर-घर में देखे जा रहे हैं। अहिंदीभाषी लोग भी इन्हें देखते और समझते हैं। इनसे भी हिंदी का प्रचार हो रहा है। विदेश में चीन, रूस. जर्मनी आदि देशों से हिंदी में रेडियो प्रसारण हो रहा है इससे भी हिंदी की लोकप्रियता का पता चलता है।
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